20वीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में अब्दुल-बहा – बहाउल्लाह के ज्येष्ठ पुत्र – बहाई धर्म के प्रमुख प्रतिनिधि थे, जो सामाजिक न्याय के समर्थक और अन्तर्राष्ट्रीय शांति के राजदूत के रूप में प्रख्यात हो चुके थे।
अपनी शिक्षाओं के मौलिक सिद्धांत के रूप में एकता का अनुमोदन कर, बहाउल्लाह ने आवश्यक सुरक्षा के उपाय कर लिये थे ताकि ‘उनका’ धर्म दूसरे धर्मों की तरह उसी नियति को कभी प्राप्त न करे, जो उसके ‘संस्थापकों’ की मृत्यु के बाद अन्य धर्मों ने टुकड़ों में विभाजित होकर कर ली थी। अपने पावन लेखों में उन्होंने सभी को यह निर्देश दिया कि वे अब्दुल-बहा, उनके ज्येष्ठ पुत्र, की ओर उन्मुख हों, न केवल बहाई लेखों के अधिकृत व्याख्याता के रूप में, अपितु प्रभुधर्म की भावना और शिक्षाओं के एक आदर्श उदाहरण के रूप में भी।
बहाउल्लाह के स्वर्गारोहण के बाद अब्दुल-बहा के चरिच की असाधारण प्रतिभा, उनके ज्ञान और मानवजाति के प्रति उनके सेवा-भाव ने बहाउल्लाह की शिक्षाओं का कार्य-रूप में जीवंत प्रदर्शन किया और पूरी दुनिया में तेजी से फैल रहे समुदाय के लिये सम्मान अर्जित किया।
बहाउल्लाह के स्वर्गारोहण के बाद अब्दुल-बहा के चरिच की असाधारण प्रतिभा, उनके ज्ञान और मानवजाति के प्रति उनके सेवा-भाव ने बहाउल्लाह की शिक्षाओं का कार्य-रूप में जीवंत प्रदर्शन किया और पूरी दुनिया में तेजी से फैल रहे समुदाय के लिये सम्मान अर्जित किया।