अब्दुल-बहा द्वारा प्रकटित प्रार्थनाएँ

मार्च २०२१

विश्व न्याय मंदिर के शोध विभाग द्वारा तैयार किया गया प्रार्थनाओं का संग्रह जो कि अब्दुल-बहा के स्वर्गारोहण की शताब्दी के उपलक्ष्य में जारी किया गया है ।

[1]

वह परमेश्वर है

हे तू जो भक्ति-भावना से उस ’स्थल’ की परिक्रमा करता है जिसकी परिक्रमा उच्च लोक के ’दिव्य समूहों’ द्वारा की जाती है! एकमेव सत्य परमेश्वर की ’देहरी’ पर तू कृतज्ञ भाव से अपने हाथ उठा और बोल: “हे तू हर उत्कट प्रेमी की उच्चतम अभिलाषा! हे तू हर भटकते प्राणी के मार्गदर्शक! तूने इस निर्बल सेवक को अपने असीम आशीषों की सत्कृपा प्रदान की है, और इस खिन्न और तुच्छ जन को अपनी एकमेवता की दहलीज़ तक लाया है। तूने अपनी स्नेहमयी दयालुता की जीवन्त जलधार को इन तृषित अधरों तक पहुंचाया है और अपनी स्वर्गिक कृपा की बयारों से इस क्लान्त और कुम्हलाए हुए व्यक्ति में नवजीवन का संचार किया है। मुझे अपनी परम करुणामयी कृपालुता का सम्पूर्ण अंश और अपनी पावन देहरी तक आ सकने का गौरव प्रदान करने के लिए धन्यवाद करता हूं मैं तेरा। उच्च लोक के तेरे साम्राज्य की उदारता भरी कृपाओं से मैं असीम अंशभाग प्रदान करने की याचना करता हूं। अपनी सहायता दे। अपना कृपापूर्ण अनुग्रह प्रदान कर।

[2]

हे तू अदृष्ट मित्र! हे इस लोक और परलोक में सबकी अभिलाषा! हे तू करुणावान प्रियतम! ये असहाय प्राणी तेरे प्रेम से विमोहित हैं, और ये निर्बल जन तेरी देहरी पर शरण की याचना करते हैं। तुझसे दूरी के कारण वे हर रात आह भरते और विलाप करते हैं, और हर सुबह विद्वेषपूर्ण जनों के आक्रमण से व्यथित होकर क्रन्दन करते हैं। हर क्षण एक नया उत्पीड़न उन्हें आहत करता है, और हर सांस पर उन्हें प्रत्येक दुष्ट आततायी का अत्याचार झेलना पड़ता है। स्तुति हो तेरी कि, इसके बावजूद वे एक अग्नि-मन्दिर की तरह प्रदीप्त और सूर्य एवं चन्द्रमा की तरह प्रखर प्रकाश से ज्योतिर्मान हैं। वे प्रभुधर्म में अप्रशंसित ध्वजाओं की तरह उन्नत खड़े हैं और वीर अश्वारोहियों की मानिन्द समर-भूमि की ओर वेगवान हैं। वे मोहक बहारों की तरह खिल उठे हैं और मुस्कुराते हुए गुलाब की भांति आनन्द से भरे हैं। अतः, हे स्नेहिल दाता, तेरे ’साम्राज्य’ से प्रदान की जाने वाली स्वर्गिक अनुकम्पा से इन पावन आत्माओं की उदारतापूर्वक सहायता कर, और यह वर दे कि ये निर्मल प्राणी ’परमोच्च’ के चिह्नों को प्रकट कर सकें। तू सर्व-उदार, दयामय, सर्व-अनुग्रहमय, करुणावान है।

[3]

हे तू अनुपम और स्नेहिल प्रभो! यद्यपि क्षमता और पात्रता का अभाव है, और दारुण दुखों को झेल पाना असीमित रूप से कठिन है, तथापि पात्रता और क्षमता तुझसे ही प्राप्त होने वाले उपहार हैं। हे स्वामिन! हमें क्षमता प्रदान कर और हमें पात्र बना, ताकि हम परम महान दृढ़ता झलका सकें, इस संसार और इसके सब लोगों का परित्याग कर सकें, तेरे प्रेम की अग्नि प्रदीप्त कर सकें, और मोमबत्तियों की भांति उद्दीप्त लौ के साथ जल सकें एवं दूर-दूर तक अपनी प्रभा बिखेर सकें।

हे ’साम्राज्य’ के स्वामी! हमें मिथ्या भ्रमों के इस संसार से मुक्ति दिला, और हमें असीमता के लोक की ओर ले चल। हमें इस निम्नलोक के जीवन से पूर्णतया मुक्त हो जाने दे, और प्रभु-साम्राज्य के उदार उपहारों से आशीर्वादित कर दे। हमें इस संसार से मुक्ति प्रदान कर जो यथार्थ-सा प्रतीत होता है किन्तु जो वस्तुतः अनस्तित्व का लोक है, और हमें अविनाशी जीवन का वरदान दे। हमें आनन्द और प्रफुल्लता दे, और हमें प्रसन्नता एवं संतुष्टि का वर दे। हमारे हृदयों को चैन और हमारी आत्माओं को अमन-शांति दे ताकि तेरे साम्राज्य की ओर आरोहण करने पर हम तेरी समक्षता का सौभाग्य पा सकें और उच्च लोकों में आनन्दित हो सकें। तू है दाता, अनुदान देने वाला, सर्वशक्तिमान!

[4]

हे मेरे अनन्त प्रियतम और मेरे आराध्य सखा! कबतक मैं तेरी उपस्थिति से वंचित और तुझसे दूर रहने के कारण घोर वेदना का शिकार होता रहूंगा? ले चल मुझे अपने स्वर्गिक साम्राज्य के विश्रांति-स्थलों की ओर, तथा अपने दैवीय लोक के प्राकट्य के स्थान पर मुझपर अपनी स्नेहिल-दयालुता की दृष्टि डाल।

हे तू सर्वशक्तिमान प्रभो! मेरी गिनती ’साम्राज्य’ के निवासियों में कर। यह नश्वर संसार मेरा बसेरा है; मुझे ’स्थानरहित’ लोकों में निवास प्रदान कर। मैं हूं इस पार्थिव धरातल का; मुझपर अपने महिमामय प्रकाश की प्रभा बिखेर। मैं रहता हूं इस धूल के संसार में; मुझे अपने बैकुंठ-लोक का सहवासी बना, ताकि मैं तेरे पथ पर अपने जीवन का उत्सर्ग कर सकूं और अपने हृदय की अभिलाषा पूरी कर सकूं, दिव्य कृपा के मुकुट से अपने शीश को सुशोभित कर सकूं और “हे परमात्मा की महिमा, हे परम महिमाशाली!” का विजय-घोष गुंजार सकूं।

[5]

हे मेरे अनन्त प्रियतम और मेरे आराध्य सखा! कबतक मैं तेरी उपस्थिति से वंचित और तुझसे दूर रहने के कारण घोर वेदना का शिकार होता रहूंगा? ले चल मुझे अपने स्वर्गिक साम्राज्य के विश्रांति-स्थलों की ओर, तथा अपने दैवीय लोक के प्राकट्य के स्थान पर मुझपर अपनी स्नेहिल-दयालुता की दृष्टि डाल।

हे तू सर्वशक्तिमान प्रभो! मेरी गिनती ’साम्राज्य’ के निवासियों में कर। यह नश्वर संसार मेरा बसेरा है; मुझे ’स्थानरहित’ लोकों में निवास प्रदान कर। मैं हूं इस पार्थिव धरातल का; मुझपर अपने महिमामय प्रकाश की प्रभा बिखेर। मैं रहता हूं इस धूल के संसार में; मुझे अपने बैकुंठ-लोक का सहवासी बना, ताकि मैं तेरे पथ पर अपने जीवन का उत्सर्ग कर सकूं और अपने हृदय की अभिलाषा पूरी कर सकूं, दिव्य कृपा के मुकुट से अपने शीश को सुशोभित कर सकूं और “हे परमात्मा की महिमा, हे परम महिमाशाली!” का विजय-घोष गुंजार सकूं।

[6]

हे दिव्य विधाता! व्याकुल कर देने वाली कठिनाइयां उत्पन्न हो गई हैं और भयावह बाधाएं सामने खड़ी हैं। हे स्वामिन! इन कठिनाइयों को दूर कर और अपनी सामर्थ्यशीलता एवं शक्तिमत्ता के प्रमाण झलका। इन संकटों को सरल बना और इस विकट पथ पर हमारे मार्ग को सुगम कर दे। हे दिव्य विधाता! ये बाधाएं बड़ी अड़ियल हैं, और हमारे संघर्ष एवं कष्ट अनेकानेक विपत्तियों से संयुक्‍त हैं। तेरे सिवा अन्य कोई सहायक नहीं है, और तेरे सिवा कोई सहारा देने वाला नहीं है। हमने अपनी समस्त आशाएं तुझपर ही टिका रखी हैं, और अपने सारे कार्यकलापों को तेरी ही देखभाल में छोड़ दिया है। तू मार्गदर्शक है और तू ही है हर कठिनाई को दूर करने वाला और तू है प्रज्ञ, सब देखने, सब सुनने वाला।

[7]

हे दयालुता के परमेश्वर! हे तू सर्वशक्तिमान! मैं बस एक निर्बल सेवक हूं, अशक्त और असहाय, लेकिन मैं तेरी दया और कृपा के आश्रय में पोसा गया हूं, तेरी कृपालुता के आंचल से मुझे पाला गया है, और तेरी स्नेहिल-दयालुता के वक्षस्थल से मुझे पोषण प्राप्त हुआ है। हे प्रभो! भले ही मैं अकिंचन और अभावग्रस्त हूं, लेकिन तेरी उदार कृपा के माध्यम से हर अभावग्रस्त को समृद्ध बनाया गया है, जबकि, तेरी कृपाओं से वंचित होने पर, वस्तुतः, हर संपन्‍न व्यक्ति दरिद्र और परित्यक्त है।

हे दिव्य विधाता! मुझे शक्ति दे कि मैं इस दुर्वह भार को झेल सकूं, और मुझे इस सर्वश्रेष्ठ अनुदान को संभाले रखने में सक्षम बना, क्योंकि परीक्षाओं की प्रबलता इतनी भीषण है और संकटों के आक्रमण इतने घोर हैं कि हर पर्वत धूल-धूसरित हो गया है, और उच्चतम शिखर शून्य में विलीन हो गया है। तू यह पूर्णत: अच्छी तरह जानता है कि मैं अपने हृदय में तेरे स्मरण के सिवा अन्य कुछ भी नहीं चाहता, और अपनी आत्मा में तेरे प्रेम के सिवा अन्य कोई अभिलाषा नहीं रखता। मुझे तेरे प्रियजनों की सेवा करने के लिए खड़ा कर, और मुझे सदा-सर्वदा तू अपनी दहलीज़ की दासता में बंधा रहने दे। तू प्रेममय है। तू अपरिमित कृपालुताओं का स्वामी है।

[8]

हे दिव्य मंगल-विधान! जागृत कर मुझे और मुझे सचेतन बना दे। मुझे तेरे सिवा अन्य सभी कुछ से अनासक्त कर दे, और अपने सौन्दर्य के प्रेम के द्वारा मनोमुग्ध कर दे। मुझपर ’पवित्र चेतना’ का उच्छ्वास संचारित कर, और मुझे ’आभा साम्राज्य’ के आह्वान की ओर कान लगाने के योग्य बना। मुझे स्वर्गिक शक्ति का दान दे, और मेरे हृदय के अन्‍तरतम प्रकोष्ठ में चेतना का दिया जला दे। हर बंधन से मुझे मुक्त कर और हर आसक्ति से मुझे बाहर निकाल, ताकि तेरी सुकृपा के सिवा मैं और कोई भी अभिलाषा न संजोऊं, तेरी ’मुखमुद्रा’ के सिवा और कुछ भी न चाहूं, और तेरे पथ के सिवा अन्य किसी भी पथ पर विचरण न करूं। वर दे कि मैं असावधानों को सजग बनाने में सक्षम हो सकूं और सोए हुए लोगों को जगा सकूं, ताकि मैं उन लोगों को जीवन-जल का पान करा सकूं जो अतीव प्यासे हैं और उनके लिए दिव्य आरोग्य का वाहक बन सकूं जो बीमार एवं व्याधिग्रस्त हैं। 

हालांकि मैं दीन-हीन, अधम और दरिद्र हूं, परन्तु तू है मेरा आश्रय और मेरी शरण, मेरा सहारा और मेरा सहायक। तू इस प्रकार अपनी सहायता भेज कि सब चकित रह जाएं। हे ईश्वर! तू, वस्तुतः, सर्वशक्तिमान है, परम बलशाली, दाता, अनुदाता, सब कुछ देखने वाला है।

[9]

वह परमेश्वर है।

हे ईश्वर, मेरे परमेश्वर! मैंने अपना मुखड़ा तेरी ओर कर लिया है, और तेरे आरोग्य के महासिंधु के प्रवाह की याचना करता हूं। कृपापूर्वक मेरी सहायता कर, हे स्वामिन, कि मैं तेरे जनों की सेवा कर सकूं और तेरे सेवकों को स्वस्थ कर सकूं। यदि तू मेरी सहायता करेगा तो मेरे द्वारा दिया गया उपचार हर व्याधि के लिए आरोग्यकारी औषध बन जाएगा, हर प्रदाह भरी प्यास के लिए जीवनदायी जल की घूंट, और हर लालायित हृदय के लिए आरामदायक मलहम। यदि तू मेरी सहायता नहीं करेगा तो वह स्वयं ही एक पीड़ा के सिवा और कुछ नहीं होगा, और मैं शायद ही किसी प्राणी को नीरोगता प्रदान कर सकूंगा।

हे ईश्वर, मेरे परमेश्वर! अपनी शक्ति के माध्यम से तू बीमारों को स्वस्थ करने में मेरा साथ दे, मेरी सहायता कर। वस्तुतः, तू आरोग्यदाता है, परिपूरक है, तू वह है जो हर वेदना और रुग्णता को दूर करने वाला है, वह जिसका साम्राज्य सभी वस्तुओं पर है।

[10]

हे प्रभो! मुझे अपनी कृपा और स्नेहिल-दया, अपनी देखरेख और अपने संरक्षण, अपनी शरण और उदार कृपा, का एक अंश प्रदान कर, ताकि मेरे दिनों के अंत उनके आरंभ से उत्कृष्ट हों, और मेरे जीवन का अवसान तेरे अगणित आशीषों के कपाटों को खोल सके। तेरी स्नेहिल-दया और उदारता हर क्षण अवतरित हो मुझपर, और तेरी क्षमाशीलता एवं दयालुता हर सांस के साथ तबतक प्राप्त होती रहे जबतक, तेरी उन्नत पताका की शरणदायिनी छांह तले, मैं अंततः ’सर्व-प्रशंसित’ के ’साम्राज्य’ में न लौट जाऊं। तू है अनुदान देने वाला और सदा प्रेम करने वाला, और तू, वस्तुतः, कृपा और उदारता का स्वामी है।

[11]

हे तू विधाता, हे तू क्षमादाता! एक भद्र आत्मा यथार्थ के ’साम्राज्य’ की ओर आरोहण कर गई है, और धूल के इस नाशवान संसार से अविनाशी महिमा के लोक की ओर शीघ्रता से बढ़ चला है। इस नवागत अतिथि के पद को उच्च बना, और इस दीर्घकालिक दास को एक नई और अद्भुत पोशाक से विभूषित कर।

हे तू अनुपम स्वामी! अपनी क्षमा और सुकोमल देखभाल का अनुग्रह प्रदान कर ताकि यह आत्मा तेरे रहस्यों के आश्रय-स्थलों में प्रवेश पा सके और आभाओं की मंडली में अंतरंग साथी बन सके। तू दाता है, प्रदाता है, सदा प्रेम करने वाला है। तू क्षमा करने वाला, मृदुल, परम बलशाली है।

[12]

वह ईश्वर है।

हे तू क्षमाशील प्रभो! ये सेवक नेक प्राणी थे, और इन प्रकाशमान हृदयों को तेरे मार्गदर्शन के प्रकाश से आलोकित और दीप्त बनाया गया था। उन्होंने तेरे प्रेम की सुरा से लबालब भरी प्याली से पान किया था, और तेरे ज्ञान के माधुर्यों द्वारा प्रदत्त अनन्त रहस्यों का ध्यानपूर्वक श्रवण किया था। उन्होंने अपने हृदयों को तेरे बंधन में बांध दिया, अलगाव के फंदे से स्वयं को मुक्त कर लिया और तेरी एकता को कसकर पकड़ लिया। इन बहुमूल्य आत्माओं को ‘स्वर्ग’ के अंतःवासियों के साथी बना और उन्हें अपने चुने हुए प्रियजनों की मंडली में प्रवेश दे। उन्हें उच्च लोक के विश्रांति-स्थलों में अपने रहस्यों के अंतरंग बना, और उन्हें प्रकाश के सागर में निमग्न कर दे। तू दाता है, दीप्तिमय है, दयावान है।

[13]

हे दिव्य मंगल- विधान! अपनी देहरी के इस सेवक के माता-पिता को अपनी क्षमाशीलता के महासिंधु में निमज्जित कर दे, और उन्हें हर पाप एवं अतिक्रमण से मुक्त कर, पावन बना दे। उन्हें अपनी क्षमाशीलता और दया प्रदान कर, और उन्हें उदारतापूर्वक क्षमादान दे।  तू, सत्य ही, क्षमादाता है, सदा क्षमाशील है, अनन्त कृपा का दातार है। हे तू क्षमाशील प्रभु! हालांकि हम पापी हैं, किंतु फिर भी हमारी आशाएं तेरे वचन और आश्वासन पर टिकी हुई हैं। हालांकि हम भ्रांति के अंधकार से आच्छादित हैं, किंतु फिर भी हमने हर समय अपने मुखड़ों को तेरी उदारतापूर्ण कृपाओं के विहान की ओर उन्मुख किया है। हमसे वैसा ही व्यवहार कर जैसाकि तेरी देहरी के लिए शोभायमान है, और हमें वह प्रदान कर जो तेरे दरबार के सुयोग्य है। तू सदा-क्षमाशील है, दोष से मुक्त करने वाला है, तू वह है जो हर त्रुटि की अनदेखी करता है। 

[14]

हे तू दयालु प्रभो! मेरे हृदय को सभी आसक्तियों से मुक्त, पावन बना दे, और मेरी आत्मा को आनन्द के समाचार से प्रफुल्लित कर दे। मुझे मित्र और अपरिचित दोनों ही के प्रति आसक्ति से बंधनमुक्त कर दे, और मुझे अपने प्रेम में विमुग्ध कर दे, ताकि मैं पूर्णतया तेरे प्रति समर्पित हो जाऊं और आवेगपूर्ण परमानंद से भर उठूं; कि तेरे सिवा मैं अन्य कुछ की अभिलाषा न करूं, तेरे पथ के सिवा अन्य किसी भी पथ का अनुगामी न बनूं, और केवल तेरे ही साथ संभाषण करूं; कि मैं एक बुलबुल की तरह तेरे ही प्रेम से मंत्रमुग्ध रहूं और, दिन-रात आहें भरूं, बिल विलाप करूं, बिलखूं और पुकार उठूं, “या बहा-उल-आभा!”

[15]

हे प्रभो! तूने कृपालुता का कैसा प्रवाह उड़ेला है, और असीम अनुकम्पा का कैसा ज्वार उमड़ा दिया है! तूने सभी हृदयों को एक ही हृदय के रूप में एकाकार कर दिया है, और सभी आत्माओं को एक ही आत्मा के रूप में एकसूत्रता से पिरो दिया है। जड़ शरीरों को तूने जीवन और अनुभूति से विभूषित किया है, और निर्जीव संरचनाओं को चेतना के बोध से सम्पन्न बनाया है। ’सर्वकृपालु के दिवानक्षत्र’ से बिखेरी गई प्रखर किरणों के माध्यम से, तूने धूल के इन अणुओं को गोचर अस्तित्व से अनुप्राणित किया है, और एकमेवता के महासागर की उत्ताल तरंगों द्वारा तूने इन क्षणभंगुर जलकणों को तरंगित होने और गर्जना करने में सक्षम बनाया है। 

हे सर्वशक्तिमान जो घास की एक पत्ती को पर्वत जैसी ताकत से सम्पन्न कर देता है और जो धूल के एक कण को प्रखर कांतिमान सूर्य की गरिमा को प्रतिबिम्बित करने में सक्षम बना देता है! हमें अपनी सुकोमल कृपा और अनुकम्पा प्रदान कर ताकि हम तेरे धर्म की सेवा के लिए उठ खड़े हो सकें और धरती के लोगों के समक्ष लज्जित-मुख न हों।

[16]

हे तू सर्वशक्तिमान प्रभो! हम सब तेरी शक्ति की मजबूत पकड़ में हैं। तू ही हमारा ’सहारा’ और हमारा ’सहायक’ है। हमें अपनी सुकोमल दया का दान दे, हमें अपनी उदार कृपा प्रदान कर, करुणा के कपाटों को खोल, और हमपर अपनी सत्कृपा भरी दृष्टि डाल। हमारे ऊपर से जीवनदायिनी बयार प्रवाहित होने दे, और तू हमारे उत्कंठित हृदयों को स्फूर्तिमान कर दे। हमारे नेत्रों को प्रकाशित कर और हमारे हृदय-रूपी अभयारण्य को हर पुष्पित होते निकुंज के लिए चाहत की वस्‍तु बना दे। हर आत्मा को आनन्द से भर दे और हर प्राण को आह्लादित कर दे। तू अपनी पुरातन शक्तिमत्ता प्रकट कर और अपनी महान सामर्थ्य को प्रत्यक्ष कर दे। मानव-आत्मा रूपी पखेरुओं को नई ऊंचाइयों में उड़ान भरने दे, और इस निम्न लोक में अपने विश्वस्त जनों को अपने ’साम्राज्य’ के रहस्यों की थाह पा लेने दे। हमारे कदमों को सुदृढ़ कर और हमें कभी विचलित न होने वाले हृदय का वरदान दे। हम पापी हैं, और तू है सदा-क्षमाशील। हम तेरे सेवक हैं, और तू है संप्रभु स्वामी। हम बेघर बंजारे हैं, और तू है हमारा आश्रय और शरण-स्थल। कृपापूर्वक हमें सहायता और सम्बल दे कि हम तेरी मधुर सुरभियों का प्रसार कर सकें और तेरे ’शब्द’ को उन्नत कर सकें। अकिंचन जनों के पद को ऊंचा उठा, और दरिद्रों को अपनी असीम सम्पदा का दान दे। निर्बलों को अपना बल प्रदान कर और अशक्तों को अपनी स्वर्गिक शक्ति का अनुदान दे। तू विधाता है, तू कृपालु है, तू वह स्‍वामी है जिसका शासन सभी वस्तुओं पर है।

[17]

वह है परम पावन, परम महिमामय!

ईश्वर के नाम पर जो है करुणावान और दयालु! स्तुति हो परमात्मा की, सर्वलोकों के उस स्‍वामी की!

हे स्‍वामी, मेरे परमेश्वर! मेरे आश्रय और मेरी शरण! हे तू जो है सर्वशक्तिमान और क्षमावान, महिमा-मंडन के अत्यंत विलक्षण शब्दों या स्तुति के परम प्रवाहपूर्ण गानों के माध्यम से भी मैं भला किस तरह तेरा समुचित उल्लेख कर सकता हूं, क्योंकि मैं इस बात से अवगत हूं कि तेरी सर्वशक्तिमान सामर्थ्य के संकेतों में से एक का भी महिमागान करने या तेरे द्वारा सृजित एक ’शब्द’ की भी प्रशंसा करने का प्रयत्न करने पर हर प्रवाहपूर्ण वक्ता की जिह्वा लड़खड़ा जाती है, और मनुष्य की लेखनी या वाणी से निस्सृत तेरे गुणगान की हर अभिव्यक्ति स्तब्ध होकर रह जाती है। सत्य ही, तेरी ईश्वरीय पावनता के वातावरण में उड़ान भरने के प्रयत्न में मनुष्य के मनो-मस्तिष्क के पक्षियों के डैने छिन्‍न-भिन्‍न हो जाते हैं, और निरर्थक कल्पना की मकड़ियां तेरे ज्ञान के वितान के उच्चतम शिखरों पर अपने भंगुर जालों का ताना-बाना बुनने में अशक्त हैं। इसलिए, मेरे लिए और कोई उपाय नहीं है सिवाय इसके कि मैं अपनी अशक्तता और अपनी कमियों को स्वीकार कर लूं, और निर्धनता एवं अकिंचनता की गहराइयों के सिवा मेरे लिए और कोई आश्रय नहीं है। सत्य ही, तुझे जान सकने में निःशक्तता ही बोध का सार-तत्व है, कमियों को स्वीकार कर लेना ही तेरी समक्षता को प्राप्त कर सकने का एकमात्र साधन है, और दरिद्रता की स्वीकृति ही सच्चे वैभव का स्रोत है।

हे स्वामिन! अपनी उदात्त देहरी की दासता में मुझे और अपने निष्ठावान सेवकों को कृपापूर्वक सहायता दे, अपनी दिव्य पवित्रता की अभ्यर्थना में हमें सशक्त कर, और तेरी एकमेवता के द्वार पर विनीत और समर्पित होने में हमें सक्षम बना। तेरे पथ पर मेरे पगों को दृढ़ कर, हे मेरे प्रभु, और मेरे हृदय को उन ज्योतिर्मय किरणों से आलोकित कर दे जो तेरे रहस्यों के स्वर्ग से विकीर्ण होती हैं। तेरी क्षम्यता और क्षमाशीलता के स्वर्गलोक से प्रवाहित होने वाले स्फूर्तिमय समीरण से मेरी चेतना को ताजगी से भर दे, और तेरी पावनता की शस्यभूमियों से आने वाली जीवनदायिनी सांस से मेरी आत्मा को उत्फुल्लित कर दे। अपनी एकता के क्षितिज के ऊपर मेरे मुखड़े को कांतिमान बना दे, और यह वर दे कि मेरी गिनती तेरे ऐसे निष्ठावान सेवकों में हो और मुझे तेरे ऐसे बंधुआ दासों में गिना जाए जो दृढ़ एवं अडिग रहते हैं।

[18]

हे ईश्‍वर, मेरे प्रभो! हम असहाय हैं; तू है शक्ति और सामर्थ्य का स्वामी। हम खिन्न हैं; तू है सर्वशक्तिमान और सर्वमहिमामय। हम दरिद्र हैं; तू है सर्व-सम्पदामय, परम उदार। अपनी पावन दहलीज़ की दासता में अनुग्रहपूर्वक हमें सहायता दे, और अपनी सबल बनाने वाली कृपा के माध्यम से तेरी स्तुति के उदय-स्थलों पर तेरी आराधना कर सकने में हमारे सहायक बन। हमें अपने रचित जीवों के बीच तेरी पावन सुरभियों का प्रसार करने में सक्षम बना, और तेरे सेवकों के बीच तेरी सेवा करने में हमें कटिबद्ध कर दे, ताकि हम सभी राष्‍ट्रों को तेरे ’महानतम नाम’ की ओर मार्गदर्शित कर सकें और सभी लोगों को तेरी एकमेवता के महिमामय महासिंधु के तटों की ओर ले जा सकें।

हे स्‍वामी! हमें इस संसार और इसके लोगों के प्रति आसक्तियों से, अतीत के अतिक्रमणों, और आने वाले कष्टों से मुक्त कर, ताकि अत्यधिक उल्लास और दीप्ति के साथ हम तेरे ’शब्द’ को उदात्त बनाने के लिए उठ खड़े हो सकें और दिवस-काल एवं रात्रि-बेला में तेरी स्तुति का समारोह मना सकें, ताकि हम मार्गदर्शन के पथ पर सभी जनों का आह्वान कर सकें और उन्हें सच्चरित्रता का पालन करने के लिए कह सकें, और यह कि हम तेरी सृष्टि के बीच तेरी एकता के श्लोकों का गान कर सकें। तू जो भी चाहे वह करने में समर्थ है। तू, सत्य ही, सर्वशक्तिमान, परम सामर्थ्यशाली है।

[19]

हे तू दयालु और प्रियतम स्‍वामी! ये मित्र ’संविदा’ की सुरा पीकर हर्षोन्मत्त हैं और तेरे प्रेम के बीहड़ में विचर रहे हैं। तुझसे दूर रहने की ज्वाला उनके हृदय को विदग्ध किए हुए है, और वे तेरी आभाओं के प्रकट होने के लिए अत्यंत ही उत्कंठित हैं। अपने अदृश्य साम्राज्य, उस अगोचर जगत, से अपनी कृपा की देदीप्यमान महिमा उनके समक्ष प्रकट कर, और उनपर अपनी कृपालुता की दीप्ति बिखेर। हर क्षण एक नया आशीष भेज और एक नूतन कृपा प्रकट कर।

हे दिव्य विधाता! हम निर्बल हैं और तू है परम बलशाली। हम नन्हीं चीटियों की भांति हैं जबकि तू महिमा के लोक का राजाधिराज है। हमें अपनी कृपा प्रदान कर और हमें अपने उदार अनुग्रह का वरदान दे, ताकि हम एक ज्योति जला सकें और दूर दिगन्त तक उसकी प्रभा बिखेर सकें, ताकि हम अपनी सबलता झलका सकें और कुछ कुछ सेवा कर सकें। वर दे कि हम अंधकार से आच्छन्न इस धरती को आलोकित कर सकें और धूल के इस चलायमान संसार में आध्यात्मिकता ला सकें। हमें एक क्षण भी आराम न करने दे, और न ही इस जीवन की नाशवान वस्तुओं से स्वयं को दूषित हो जाने दे। हमें मार्गदर्शन का प्रीति-भरे तैयार करने, अपने जीवन-रक्त से प्रेम के छंदों को अंकित करने, भय और संकट से पीछे छोडने, सुफल वृक्षों की तरह बन जाने में सक्षम बना, और इस नश्वर संसार में मानवीय पूर्णताओं को प्रकट हो जाने दे। सत्य ही, तू है सर्वकृपालु, परम करुणावान, सदा-क्षमाशील, दोष-मोचक।

[20]

वह सर्व महिमामय है।

हे मेरे स्वामी, मेरे राजाधिराज, मेरे अधिपति, और मेरे सम्राट! मैं अपनी वाणी, अपने हृदय, और अपनी आत्मा से तुझे पुकारता हूं, और कहता हूं: अपने इस सेवक को अपनी देखरेख का परिधान, अपनी अचूक सहायता के वस्त्र और अपनी संरक्षा का कवच पहना। तेरे लोगों के बीच तेरा उल्लेख और तेरे गुणों का स्तुति-गान करने में उसे सहायता दे, और तेरी एकता एवं पावनता का समारोह मनाने के लिए आयोजित हर सभा में तेरी प्रशस्ति और तेरी महिमा का गान करने के लिए उसकी वाणी को उन्मुक्त कर दे। तू, सत्य ही, सामर्थ्यवान है, शक्तिशाली है, सर्व-महिमामय, स्वयंजीवी है।

[21]

हे मेरे दयालु स्वामी, हे तू मेरे हृदय और मेरी आत्मा की अभिलाषा! अपने मित्रों पर अपनी स्नेहिल-दया अभिसिंचित कर, और उन्हें अपनी कभी विफल न होने वाली दया का दान दे। अपने उत्कंठित प्रेमियों के लिए तू एक सांत्वना बन, और जो तेरे लिए ललकते हैं उनके लिए एक मित्र, चैन देने वाला, और प्रेममय सहचर बन। उनके हृदय तेरे प्रेम की अग्नि से प्रदीप्त हैं, और उनकी आत्‍माएं तेरे प्रति भक्ति-भावना से विह्वल है। वे सब के सब प्रेम की वेदी की ओर शीघ्रता से बढ़ चलने को आतुर हैं, ताकि वे स्वेच्छा से अपने जीवन निछावर कर सकें।

हे दिव्य विधाता ! उन्हें अपनी कृपा प्रदान कर, उन्हें सही राह दिखा, आध्यात्मिक विजय प्राप्त करने में कृपापूर्व क उन्हें सहायता दे, और उन्हें स्वर्गिक अनुदानों प्रदान कर। हे स्‍वामी, अपनी उदार-हृदयता और अनुकम्पा से उन्हें सहायता प्रदान कर, और तेरे ज्ञान के प्रति समर्पित सभाओं में उनके कांतिमान मुखड़ों को मार्गदर्शन के दीप, और जिन सम्मिलनों में तेरे श्लोकों का महिमा-विस्तार किया जाता है उनमें उन्हें स्वर्गिक कृपालुता के संकेत-चिह्न बना। तू, सत्य ही, दयालु है, सर्व-उदार है, तू वह है जिसकी सहायता की याचना सभी करते हैं।

[22]

वह है सर्व महिमामय, परम दीप्तिमान।

हे दिव्य विधाता, हे क्षमाशील स्वामी! मैं भला कैसे कभी तेरा समुचित रूप से यशोगान कर सकता हूं या फिर पर्याप्त रूप से तेरी आराधना या महिमा-मंडन कर सकता हूं? तेरा वर्णन चाहे कोई भी जिह्वा करे, वह त्रुटि के सिवा और क्या हो सकता है, और तेरा चित्रण चाहे कोई भी लेखनी करे, वह इस विकट कार्य को करने की चेष्टा में नादानी के प्रमाण के सिवा और क्या हो सकता है! जीभ तो हाड़-मांस से बना हुआ एक उपकरण मात्र है; ध्वनि और वाणी संयोगजनित गुणधर्म के सिवा और कुछ नहीं हैं। तो फिर इस पार्थिव ध्वनि रूपी उपकरण की सहायता से मैं ’उसके’ यशोगान का समारोह भला कैसे मना सकता हूं जो अनुपम है और जिसके समान अन्य कोई नहीं? जो कुछ भी मैं कह सकता हूं या जो भी मैं चाह सकता हूं वह मानव-मस्तिष्क की बोधक्षमता से परिसीमित है और इस मनुष्य लोक की सीमाओं के दायरे में है। मानव की मति ईश्वरीय पावनता के उत्तुंग शिखरों को भला कभी कैसे लांघ सकती है, और निरर्थक मायाजाल की मकड़ी निर्मलता के आश्रय-स्थल पर कपोल-कल्पना के भंगुर जालों का ताना-बाना भला कभी कैसे बुन सकती है? मैं अपनी शक्तिहीनता को प्रमाणित और अपनी विफलता को स्वीकार करने के सिवा और कुछ भी नहीं कर सकता। तू, सत्य ही, वह है जो है सर्व-सम्पदामय, परम अगम्य, वह जो कि समझ-सम्पन्न लोगों के बोध से अपरिमेय रूप से उदात्त है।

[23]

हे दिव्य विधाता, तू है सदा-क्षमाशील! हे तू सर्वशक्तिमान परमेश्वर, तू है दयाशील! अपने इस अति प्रिय सेवक को अपनी महिमा की छाया के नीचे निवास करने दे, और यह वर दे कि यह भाग्यहीन और विनीत प्राणी तेरी दया की परिसीमा में फले-फूले और समृद्ध हो। उसे अपनी निकटता के प्याले से पान करने दे, और अपने ’आशीर्वादित वृक्ष’ की छांह तले बसने दे। उसे अपना सान्निध्य प्राप्त करने का गौरव प्रदान कर, और उसे अक्षय आनन्द से भर दे। इस सज्जन प्राणी के जीवित बंधु-वांधवों को अपने प्रिय पिता के चरण-चिह्नों पर चलने, सभी लोगों के बीच उसके चरित्र और आचरण की झलक दिखाने, तेरे पथ का अनुगामी बनने, तेरी सत्कृपा पाने, और तेरा स्तुति-गान करने में कृपापूर्वक सहायता दे। तू है सर्वदा स्नेहशील परमेश्वर, उदारता का स्‍वामी।

[24]

हे तू अतुलनीय परमात्मन! हम हैं तेरे विनीत सेवक, और तू है परम महिमामय। हम हैं पापी, और तू है सदा-क्षमाशील। हम हैं दास, गरीब और अधम, और तू है हमारी शरण और हमारा सहायक। हम हैं नन्हीं चींटियों की मानिन्द, और तू है उच्चतम स्वर्ग-सिंहासन पर विराजमान ऐश्‍वर्य का परमेश्वर। अपनी करुणा के संकेतस्वरूप, हमारी रक्षा कर, और हमें अपनी देखरेख और सहायता से वंचित मत कर। हे स्‍वामी! तेरी परीक्षाएं वास्तव में बड़ी कठोर होती हैं और तेरे द्वारा भेजी गई आपदाएं इस्पात से ढली हुई आधारशिलाओं को भी ध्वस्त कर सकती हैं। हमें सुरक्षित कर, हमें बल प्रदान कर; हमारे हृदयों को प्रसन्न व प्रमुदित कर दे। अपनी पावन दहलीज़ पर हमें अब्दुल-बहा की तरह ही सेवा करने में उदारतापूर्वक सहायता दे।

[25]

वह ईश्वर है।

हे ईश्वर, मेरे परमेश्वर! अत्यंत ही दीनता और उत्कंठा, विनम्रता और भक्तिमयता, के साथ मैं अपनी वाणी और अपने हृदय, अपनी चेतना एवं अपनी आत्‍मा, और अपनी चेतना एवं आत्‍मा से और मेरे मन व अंत:करण से तुझसे याचना करता हूं कि इस परिवार के लिए, जो कि तेरे प्रकाशमय प्रभात के फूटने के साथ ही तेरी शरणदायिनी छांह की ओर द्रुत गति से चल पड़ा और जिसने तेरे सुरक्षित आश्रय और तेरे शक्तिशाली दुर्ग में शरण की याचना की है, सर्वाधिक प्रिय अभिलाषा की पूर्ति का वर दे, सभी कर्मों में से सबसे सुयोग्य कर्म नियत कर, और हर सम्मान और पूर्णता, कृपा और सौन्दर्य, समृद्धि और मुक्ति प्रदान कर। वस्तुतः, इन आत्मनों ने तेरी पुकार पर ध्यान दिया, तेरी देहरी की निकटता प्राप्त की, तेरे प्रेम की अग्नि से प्रदीप्त और तेरी पावनता की सांसों से स्फूर्त हुए। वे तेरे धर्म की सेवा में अडिग, तेरी मुखमुद्रा के सम्मुख विनम्र, और तेरी शरणदायिनी छांह के तले नेक बने रहे थे। वे तेरे लोगों के बीच तेरे नाम के संवाहकों के रूप में और तेरे सेवकों के बीच तेरा उल्लेख करने के लिए सुप्रसिद्ध हैं।

हे ईश्‍वर, मेरे परमेश्वर! अपनी पुरातन महिमा से उनके पद को ऊंचा उठा, अपनी गरिमा के साम्राज्य में उन्हें प्रतिष्ठा दे, और इस महान युग में अपनी कृपाओं के समूहों द्वारा उनकी सहायता कर। हे प्रभो, मेरे ईश्‍वर! उनकी ध्वजा को ऊंचा उठा, उन्हें अपनी सुरक्षा का और अधिक अंशदान दे, उनके चिह्नों का दूर-दूर तक प्रसार कर, और उनकी कांति बढ़ा, ताकि वे तेरी अगणित कृपाओं के प्रदीप के लिए एक शीशे की भांति और तेरी स्नेहिल-दयालुता एवं उदारताओं का प्रसार करने वाले बन जाएं। 

हे स्‍वामी, मेरे परमेश्वर! उनके अकेलेपन में तू उनका मित्र बन, और उनकी घोर वेदना के क्षणों में उन्हें अपनी सहायता के घेरे में ले। उन्हें अपने ’ग्रंथ’ की विरासत सौंप और उनके लिए अपने उपहारों और अनुदानों का पूरा अंश निर्धारित कर। तू, सत्य ही, सामर्थ्यवान है, शक्तिशाली है, भव्य है, उदार है, और तू, सत्य ही, दयालु है, करुणावान है।

[26]

हे स्‍वामी परम उदार, करुणा के असीम आगार,

जिसका ज्ञान मेरे अन्‍तरतम हृदय और मेरी आत्मा के आभ्यंतर में अंगीकार!

उषाकाल में मेरी आत्मा का आश्वासन केवल तू है;

मेरे उत्कट ध्येय का जिसे ज्ञान वह केवल तू है।

जिस मानस ने क्षण भर को भी जाना है तेरा उल्लेख

ललक भरी पीड़ा तेरे हित, उसका मरहम तू ही एक।

बंजर हो वह हृदय कि जिसमें उठती तेरी आह नहीं,

अंधा हो वह नेत्र कि जिसमें व्याकुल तेरी चाह नहीं।

मेरी गहन निराशा के हर क्षण में, हे शक्तिमान स्वामी,

तेरी प्रभा हेतु मेरा हृदय तेरा सुमिरन करता, हे स्‍वामी!

अपनी परम कृपा से मुझमें निज चेतना की सांस भर दे,

ताकि जो कभी नहीं था वह आगे सदा रहे, ऐसा वर दे।

मेरी क्षमता और मेरे मूल्य का, हे कृपालु स्वामी! विचार न कर,

अविरत तेरी कृपा प्रवाहित होती रहे, मिले यह वर।

इन पखेरुओं के टूटे हैं पंख, बड़ी है मंद उड़ान

निज कोमल करुणा से इनको नए परों का दे अनुदान।

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